महिला, श्रम और पलायन के प्रश्न

(जिला-जाँजगीर के श्रमिक महिलाओं के पलायन का समाजशास्त्रीय विश्लेषण

छ0ग0 के विशेष संदर्भ में)

 

डाॅ. (श्रीमती) व्ही.सेनगुप्ता

 

ठा. छे. ला. शा. स्नातकोत्तर महा. वि. जाँजगीर (..)

 

 

ग्रामीण जनसंख्या का गांवो से नगरांे की ओर प्रवास रोजगार की खोज के लिए जाना ही पलायन है।

समान्य अर्थ में प्रवास, प्रवासन, देशान्तर, स्थानांतरण आदि को आंग्ल भाषा में माईग्रेशन कहते हे। जिसका अर्थ है एक स्थान से दूसरे स्थान तक आना-जाना। ऐसे व्यक्ति जो स्थानांतरण रोजी रोजगार के लिए अपने मूल निवास को छोड़कर किसी अन्य स्थान पर जाकर बस जाता है। उसे प्रवासी और ऐसी प्रक्रिया को प्रवसन या देशांतर कहते है। इसका प्रमुख कारण ग्रामीण भारत में कृषि की दशा का घटना है, कम उत्पादन निर्धनता तथा बेरोजगारी का होना है। यद्यपि यह प्रक्रिया भारत की ही नहीं अपितु अंतराष्ट्रीय सामाजिक भौगोलिक समस्या है।

 

 

 

ग्रामीण जनसंख्या का गांवो से नगरांे की ओर प्रवास रोजगार की खोज के लिए जाना ही पलायन है। समान्य अर्थ में प्रवास, प्रवासन, देशान्तर, स्थानांतरण आदि को आंग्ल भाषा में माईग्रेशन कहते हे। जिसका अर्थ है एक स्थान से दूसरे स्थान तक आना-जाना। ऐसे व्यक्ति जो स्थानांतरण रोजी रोजगार के लिए अपने मूल निवास को छोड़कर किसी अन्य स्थान पर जाकर बस जाता है। उसे प्रवासी और ऐसी प्रक्रिया को प्रवसन या देशांतर कहते है। इसका प्रमुख कारण ग्रामीण भारत में कृषि की दशा का घटना है, कम उत्पादन निर्धनता तथा बेरोजगारी का होना है। यद्यपि यह प्रक्रिया भारत की ही नहीं अपितु अंतराष्ट्रीय सामाजिक भौगोलिक समस्या है।

किसी भी राष्ट की जनसंख्या के स्वरूप तथा गठन में परिवर्तन करने में स्थानांतरण का सर्वाधिक महत्व होता है। विभिन्न क्षेत्रों से दूसरे क्षेत्रों में आवागमन आर्थिक विकास के स्तर से भिन्न प्रत्येक मानव समूह की विशलेषण है।

 

इस प्रकार ििकसी भी देश अथवा प्रदेश की जनसंख्या के भौगोलिक विश्लेषण में

प्रवजन का महत्वपूर्ण एवं स्थायी स्थान होता है। प्रवास की मुख्य रूप से दो स्थितियां होती है।

1.    बर्हिगमन (उत्प्रवसन) (म्उपहतंजपवद)

2.    अंतर्गमन ( प्उपहतंजपवद )

 

मनुष्य जहाॅ से स्थान परिवर्तन करता है। वहाॅ उसके स्थान को प्रवसन तथा प्रवासित जनसंख्या जहाॅ आकर बसती है। वहाॅ उसे अप्रवसन कहा जाता है।

 

अध्ययन का उद्देश्य-

1.    प्रवसन के कारणों का अध्ययन करना।

2.    प्रवासियों द्वारा गांवों में छूटे हुए परिवारों की समस्याओंका अध्ययन करना।

3.    समस्या समाधान के लिए सझाव प्रस्तुत करना।

 

प्रत्याकर्षण के कारण है जो ग्रामीण से नगर की ओर स्थानांतरण के लिए प्रेरित करते है। गांव में शिक्षा के साधनों की कमी के कारण लोग नगर की तरफ प्रवास कर रहे है।

 

.. में पलायन की प्रवृति अत्यधिक हे। .. में आदिवासियों की 42 जनजातियाॅ पाई जाती है। प्रमुख जनजाति गोड़ है। .. आदिवासी बहुल प्रांत है। 2001 की जनगणना के अनुसार भारत की कुल जनसंख्या का 8.2 प्रति. आबादी आदिवासीयों की है। जिसमें .. में कुल जनसंख्या 2001 की जनगणना के अनुसार 31.67 प्रति. है। जिला जाँजगीर-चाँपा से भी महिलाएॅ मौसमी पलायन करके जीविकोपार्जन के लिए बाहर जाती है। अनु.जाति/आदिवासी बहुलता होने के कारण यहाॅ एक प्रमुख समस्या पलायन देखने को मिलती है।

 

अनु. जाति/आदिवासी में पलायन की प्रवृति के कई कारण देखने को मिलते है। यहाॅ पलायन करने वालों में मुख्य कारण 35 प्रति. जनसंख्या का कृषि में सिंचाई का अभाव है। 10 प्रतिशत जनसंख्या कृषि उत्पादकता का कम होना, 12 प्रतिशत जनसंख्या कृषि ऋणग्रस्तता तथा 15 प्रतिशत अन्य कारण जैसे-शिक्षा, स्वास्थ्य, सामाजिक, आर्थिक जड़ता जनसंख्या युक्त परिवार प्रथा का विघटन आदि कारण है।

 

मध्यप्रदेश के विभाजन से पूर्व से ही छत्तीसगढ़ अंचल भारतवर्ष के मानचित्र में धान के कटोरे के रूप में विख्यात रहा है। अपनी विशिष्ठ आंचलिक विशिष्टताओं के लिये छत्तीसगढ़ अनूठे प्रदेश के रूप् में प्रतिष्ठित रहा, किन्तु विगत दो-तीन दशकों से (जब प्रदेश मध्यप्रदेश का ही अंग था) ग्रामीण अंचलों से काफी तादाद में सामान्य मजदूर वर्गो के परिवार उदरपूर्ति एवं अन्य संसाधनों की पूर्ति के लिये प्रदेश की सीमाओं से पार अन्य प्रदेशों जिनमें उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, जम्मू कश्मीर आदि शामिल है। यहाॅ रोजगार के लिए पलायन प्रारंभ करता रहा। पूर्व में सीमित परिवार हो इन प्रदेशों में जाते थे किन्तु वर्तमान समय मं औसतन गांव की आबादी का करीब 25 प्रतिशत परिवार पलायन की ओर अग्रसर है। वस्तुतः यह समस्या आर्थिकाक्षेत्र से संबंधित होते हुए भी सामाजिक परिवेश में व्याप्त है।

 

श्रमिक परिवारों के पलायन का मुख्य कारण छत्तीसगढ़ अंचल में सिंचाई सुविधाओं की बुनियादी कमी एवं अन्य आवश्यक संसाधनों का अभाव है। पूरे वर्ष एकमात्र धान की खेती पर अवलंबित रहने से यह समस्या निर्माण हुई है। यद्यपि वर्तमान परिवेज्ञ में नलकूपों और सिंचाई संसाधनों में उत्तरोत्तर वृद्धि हुई है किन्तु अभी भी आबादी का बहुत बड़ा वर्ग धान की खेती पर प्राकृतिक वर्षा के सहारे निर्भर है। पलायन के इस स्वरूप्का सामाजिक परिवेश एक चिन्तनीय पहलू है। पलायन के दौर में सर्वप्रथम पारिवारिक व्यवस्था छिन्न-भिन्न हो जाती है। ग्रामीण क्षेत्रों में घर की रखवाली के लिये वयस्क बच्चों को छोड़ दिया जाता है और अवयस्क बच्चों की शिक्षा को रोककर उन्हें दूधमुंहे बच्चों की देखभाल के लिये साथ ले जाया जाता है। इसका गंभीर दुष्परिणाम समाजिक स्तर पर पड़ता है। अभिभावकों के अभाव में घर मंे छोड़े गये वयस्क बच्चे दुव्र्यसन एवं अपराधिक मनोवृत्तियों के शिकार हो जाते है। तथा अवयस्क बच्चों की शिक्षा रूक जाती है। यही इस अंचल में बाल श्रम का भी कारण है।

ज्यादातर मजदूर परिवारों का पलायन धान कटाई के बाद होता है और वापसी जून के माह में होता है। इनमें से कई परिवार अन्य प्रदेशों में प्राकृतिक आपदाओं के शिकार हो जाते हैं तथा परिवार के शिशु गंभीर बीमारियों के शिकार हो जाते हैं। विगत माह में बिलासपुर और जाँजगीर जिले के पलायन करने वाले परिवार लेह में बादल फअने की घटना से काल-कवलित हो गये थे। मृतकों के बचे बच्चों की परवरिश की समस्या एक गंभीर सामाजिक आपदा है।

 

सामाजिक स्तर पर पलायन को समयचित् विकल्प के रूप् में मान्यता मिल चुकी है जो कदाचित् ग्रामीण समाज में आर्थिक सम्पन्नता के लिये अनिवार्य पहल के रूप में लिया जा रहा है। जो शायद गंभीर परिणामों को अंजाम दे सकता है।

 

नन्हे मुन्नों से छिन रहा बचपन शिक्षा का अधिकार-

पेट की आग बुझाने ईट भट्ठे में काम करते है अबोध बच्चे। बरसात का मौसम बीच चुका हैै। खेतों में पके हर तैयार फसल अब कटाई की बाट जोह रहें हेैं। ऐसे में कृषक मजदूर अपनी रोजी-रोटी की चिंता में दूसरे रोजगार के साधन तलाशते फिर रहे हैैैैैैैं।

 

मौके का फायदा उठाते हुए मजदूरों का शोषण करने वाले दलाल भी जिले में इनके पलायन के लिए अपना जाल फेलाने लगे हैं। जिले से हर साल भारी संचया में मजदूर पड़ोसी राज्य .प्र. दिल्ली सहित जिले के विभिन्न क्षेत्रों में चल रहे ईट भट्ठों में काम करने भारी संख्या मंे पलायन करते है। माॅ-बाप के साथ छोटे-छोटे बच्चों का पलायन करना इनकी मजबूरी होती है। लेकिन पेट के इस आग की मजबूर एक बार इन्हें नन्हें मुन्नों से उनका बचपन और शिक्षा का अधिकार का छिन्ने के लिए तैयार है और हर बार की तरह इस बार भी शासन पलायन रोकने के नाम पर कागजी कार्यवाही के अतिरिक्त कुछ करता नजर नहीं रहा है।

 

पापी पेट का सवाल-

बच्चों से मजदूरी कराने के संबंध में पूछे जाने पर पत्थलगांव विकासखंड से ईट भट्ठे में मजूदरी करने आए क्रिस्टीना ने बताया कि उसके पास तो जमीन है और नही आय का कोई और जरिए। इसलिए मजबूरी में ईट भट्ठे में काम करना पड़ता है। इसी प्रकार कांसाबेल के मजदूर राम प्रसाद ने बताया कि ईट निर्माण करना उसका पुष्तैनी कार्य है। ईट निर्माण करने के लिए वह .. के आलावा उप्र. बिहार और दिल्ली भी अपने परिवार के साथ जा चुका है। राम प्रसाद का कहना है कि ईट भट्ठा में ठेकेदार द्वारा निश्चित मजदूरी का भुगतान ना कर प्रति सैकड़ा के दर से भुगतान किया जाता है। इसलिए कम समय में अधिक से अधिक ईटों का निर्माण करने के लिए बच्चों सहित पूरा परिवार इस काम में जूटा रहाता है। वहीं लोदाम क्षेत्र के बिसुन का कहना है कि धान की फसल कट जाने के बाद सिंचाई की सुविधा होने के कारण ग्रामीण के समक्ष बेरोजगारी की समस्या उत्पन्न हो जाती है और इसलिए वो और उसका पूरा परिवार ईट भट्ठों में मजदूरी करता है।

 

सरकारी योजनाएॅ सिमटी कामजो में-

पेट की आग बुझाने के लिए ईट भट्टों में अपने मासूम बच्चों सहित पूरे परिवार के साथ दिन-रात मजदूरी करने वाले इन परिवाररों के लिए मुख्य मंत्री खाद्यान्न योजना और मनरेगा जैसे शासकीय योजनाओं का महत्व एक सारी नारे से अधिक कुछ भी नहीं है। ईट भट्टों के मजदूर जिन्हें पथेरा कहा जाता है, का कहना है कि शासन द्वारा मुक्त में दिया जाने वाला रा शन उनके परिवार के लिए पर्याप्त नहीं होता वहीं रोजगार गारंटी योजना अंतर्गत होने वाले निर्माण कार्यो में पसीना बहाने के बाद मजदूरी पाने के लिए महीनों शासकीय कार्योलयों के चक्कर काटने पड़ते है इसलिए उसका परिवार ईट भट्टे में सपरिवार मजदूरी करता है।

 

कहाॅ है अनिवार्य शिक्षा-

एक ओर जहाॅ शासन 1 अप्रैल से अनिवार्य शिक्षा कानून लागू करने जा रही वहीं दूसरी ओर देश का भविष्य कहलाने वाले मासूम अपने कंधे में गरीबी के कारण ईट भट्टों सहित अन्य कार्यो में मजदूरी करते हुए आसानी से देखा जा सकता है। ऐसा नहीं कि अनिवार्य शिक्षा कानून के अलावा बाल श्रम रोकने और मासूमों को स्कूल की सीढ़ियों तक ले जाने के लिए कोई अन्य कानून या योजना नहीं है। लेकिंन सरकारी अमले द्वारा इसमें रूचि लेने के कारण सारे के सारे कानून और योजनाएॅ कागजी साबित हो रहे हैं।

 

नहीं लगता ईट भट्टें में मन-

पत्थलगांव से जशपुर मंे कर ईट भट्टों में मजदूरी कर रहे 14 वर्षीय किरण से स्कूल जाने के संबंध में पूछे जाने पर उसने बताया कि जब भी वो हम उप्र. बच्चों को यूनिफार्म में बस्ता टांगे स्कूल जाते देखती है तो उसका मन भी स्कूल जा कर पढ़ाई करने को मचलने लगता है लेकिन फिर पारिवारिक मजबूरी का ख्याल आते ही मन मसोस कर रह जाना पड़ता है। वहीं आठ वर्षीय छोटू का कहना था कि वह जशपुर आने से पहले अपने गांव में स्कूल जाया करता था लेकिन माता-पिता के जशपुर जाने के कारण मजबूरी में उसे पढ़ाई छोड़ कर यहाॅ मजदूरी करने के लिए आने पड़ा।

 

परिकल्पना-

1.    भारतीय महिलाओं के सामाजिक आर्थिक दशाओं में सुधार किए जाने की आवश्यकता है।

2.    भारतीय महिलाओं पूर्णतः स्वंत्र आत्मनिर्भर नहीं है।

3.    ग्रामीण महिलाओं के पलायन आज भी बड़े पैमाने पर हो रहे है।

4.    शासन की योजनाएॅ महिलाओं को पूर्ण-साक्षर करने में असफल हुई है।

5.    शासन द्वारा क्रियान्वित कार्यो में पलायन को रोक पाने में असफल हुई है।

6.    ग्रामीण महिलाओं के आज भी सामाजिक पिछड़ापन जैसे रूढिवादी, अंधविश्वास एवं अन्य सामाजिक स्थितियों से पूर्णतः आहूत नही है, अर्थात् महिलाओं में चेष्ठ जागृति प्रदान किए जाने की जरूरत है।

 

महत्व-

ग्रामीण महिलाओं के पलायन को रोकने में शिक्षा महत्वपूर्ण योगदान देती है।‘‘भारत की आत्मा गांवों में निवास करती है- यदि गांव सुशिक्षित होगा तो राज्य सुशिक्षित होगा और राज्य सुशिक्षित होगा तो देश सुशिक्षित होगा’’ कुछ इसी तरह नेपोलियन के भी विचार थे उन्होंने कहा कि ‘‘मुझे सुशिक्षित माताएॅ दो मै तुम्हें सुशिक्षित राष्ट्र दूंगा।’’ वर्तमान में नारियाॅ जिन पदो पर कार्य कर रही है, उनमें वे पुरूषों की अपेक्षा कम वृद्धिमत्ता का परिचय नहीे दे रही है। जहाॅ सेवा भाव इनकी मूल धरोहर है, वहीं वे शिक्षा, व्यवसाय, प्रशासन, सुरक्षा जैसे क्षेत्रों में कार्यरत है।

 

 

उक्त सारिणी के विश्लेषण से स्पष्ट होता है कि अध्ययनगत उत्तरदाताओं की सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि का अध्ययन करने से यह तथ्य सामने आई है कि 50 वर्ष से  अधिक आय के उत्तरदाता अधिक मात्रा में बाहर जाती हे। एवं अधिकांश महिलाएॅ अशिक्षित है जो पलायन करके बाहर जाती है उनकी जाति अनु0 जाति अधिक मात्रा है।

 

प्रवासियों द्वारा गांवो में छूटे हुए परिवारों की समस्याएॅ-

ग्रामीण भारत का प्रमुख संसाधन कृषि है, जिसका पूर्ण उपयोग लगन की कमी श्रम समस्या के कारण नहंीं हो पा रहा है। ग्रामीण लोेंगो को औद्योगिक नगीय संस्कृति जल्दी ही प्रभावित करती है और प्रवासी जनसंख्या गांव में जाकर ग्रामीण संस्कृति को दूषित कर रही है। ग्रामीण युवाओं की शक्ति का समुचित उपयोग होने से उनकी शक्ति क्षीण हो रही है।

 

सुझाव-

ग्रामीण जनसंख्या को रोकने हेतु पर्याप्त मात्रा मेें गांवो के आसपास ही रोजगार, शिक्षा, चिकित्सा की आधुनिकतम व्यवस्था उपलब्ध कराई जाए। जिससे उन्हें प्राथमिक उपचार उच्चशिक्षा, तकनीकी शिक्षा जीविकोपार्जन के पैसा कमाने हेतु अन्यत्र ना जाना पड़े।

 

ग्रामीण पलायन को रोकने के निम्नांकित उपाय है-

01.  ग्रामीणजनों के विकास हेतु ग्रामीण क्षेत्रों में कार्ययोजना क्रियान्वयन किया जावे ताकि उनकी आर्थिक दशा में सुधार होगा और पलायन में रोक लगेगी।

02.  ग्रामीणजनों में शिक्षा की समुचित व्यवस्था का क्रियान्वयन किये जाने के फलस्वरूप।

03.  ग्रामीण महिलाओं श्ला त्यागी बच्चों के शिक्षा के दिशा में आवश्यक पहल किये जाने के फलस्वरूप पलायन पर रोक लगायी जा सकती है।

04.  कृषि यंत्रों के अभाव को दूर कर पर्याप्त कृषि यंत्र की उपलब्धता हो।

05.  आर्थिक दृष्टिकोण को मजबूत करके तथा उनके लिए कार्य कर आगामी व्यवस्था करके पलायन को रोका जा सकता है।

06.  ग्रामीणों की आर्थिक स्थिति में सुधार हेतु अनेक प्रकार के ऋण उपलब्ध कराकर आर्थिक स्थिति में सुधार की जा सकती है जिससे पलायन में रोक लगेगा।

 

निष्कर्ष-

पलायन के यदि गुण और दोष का विश्लेषण करे तो पलायन के दोष की अपेक्षा गुण अधिक देखने को मिलता है। इस प्रकार पलायन मेरे दृष्टिकोण से अच्छा है। यह सिर्फ राजनीति समीकरण के कारण बुरा कहा जाता है।

 

इस प्रकार यदि सभी योजना को प्रभावी ढंग से लागू किया जाए तो पलायन को रोकने में कुछ हद तक काबू पाया जा सकता है।

 

राज्य सरकारों ने श्रमिकों के हितों की सुरक्षा के लिए न्यूनतम मजदूरी अधिनियम सहित श्रम कानूनों को लागू किया है, परन्तु इसका कड़ाई से अनुपालन नहीं किया गया है, न्यूनतम मजदूरी के भुगतान के बारे में जहाॅ तक जनजातीय श्रमिकों का संबंध है श्रम कानूनों को प्रभावी रूप् से लागू किया जाना आवश्यक है। वस्तुतः असंगठित श्रमिकों के रूप में कार्य कर अपना जीवन यापन करता है। वर्ष 1991 के आंकड़ों के आधार पर अनु.जा. जनसंख्या की कार्य सहभागिता जनसंख्या की दर 037.46 तथा अनु.जाति. की दर 39.25 है। परन्तु अनु.जाति की महिला 25.25 प्रतिशत है। वस्तुतः अनु.जन. महिला श्रम सहभागिता दर अधिकांश राज्यों तथा संघशासित क्षेत्रों में सामान्यतः बहुत अधिक है।

 

अनु.जाति/जन.जाति/पिछड़ावर्ग जनसंख्या मुख्यतः ग्राम बोरसरा/बनारी/घाटाद्वाराी है, जहाॅ महिला श्रम सहभागिता की दर शहरी जनसंख्या की तुलना में अधिक है, दूसरा अनु.जनजाति जनसंख्या वनोपज जैसी गतिविधियों में बहुलता से विनियुक्ति है, जो कि महिलान्मुखी है, तीसरी अनु.जनजाति महिलाओं में बहुत ही कम साक्षरता स्तर के कारण पाठशाला जाने वाली महिला जनसंख्या बहुत ही कम है। जिसके कारण आर्थिक गतिविधियों में युवा कन्याओं की सहभागिता में वृद्धि हुई है। श्रम की महत्ता से सभी परिचित है। ’’श्रम ही पूजा है’’

 

उपरोक्त विश्लेषण के आधार पर निष्कर्षतः यह कहा जा सकता है कि श्रम पलायन छत्तीसगढ़ राज्य के केवल भूमिहीन मजदूरों वरन् लघु सीमान्त कृषकों की एक महत्वपूर्ण प्रवृत्ति को स्पष्ट करता है। जिसके प्रमुख कारणों में भौगोलिक सामाजिक कारकों की तुलना मे आर्थिक कारकों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। जिसमें निर्धनता, बेरोजगारी तथा मूल निवास में प्रचलित मजदूरी की अतिन्यून दर महत्वपूर्ण है। ऐसे में राज्य के आर्थिक विकास के लिए यह आवश्यक है कि श्रम शक्ति के एक बड़े भाग को पलायन से रोकने के लिए कारगर कदम उठाने होगें। जिसमें कृषि क्षेत्र मंे सिंचाई सुविधाओं के विस्तार के साथ-साथ रोजगार के अधिकाधिक अवसरांे की उपलब्धता बेहतर, मजदूरी के साथ करानी होगी, तभी श्रम पलायन की दर में कमी लायी जा सकती है।

 

संदर्भ-सूची

 

01.   Chaterjeet, R. 1982. Marginalisation and Case study of femal Aqriwlfural waqe labours in India: 1964-65 to 1974-75: World Employment proqramme, working paper, I L O Geneva. See also, Children in Rural North India, Cornell University Press, london.

02.   See for detail Devendra, K 1985 Status and Position of Women  in Ind. Vikas pub. House, New Delhi, P.77-90.

03.   Kuppuswamy, B 1975 change in India Vikas pub. House, Delhi p 153.

04.   Antonova 1970 : “The  effect of migration on changes composition and distribution of Canada’s population,’’ Soviet geography : Review and translation, Vol’ 11, PP.672- 77

05.   Bagchi, Jahnabi and- 1977: “Population and H.R.Betal. Migration in West Bengal’’ G.R.I., Vol.3, PP.282-85.

06.   DAVID (M) HEAR : Society and Population, p-75-77.

07.   EISONSTADI (SN) : The Absorption of Immigrants : A Comparative study based mainly on the jewish Community in palestine and the study of.

08.   WEBSTER’S- Third New Intermational Dictionary Massachusetts G.S.C. Marrian Company. 166, Vol.2 p1432 Israel, London, 1954.

01ण्    क्रांनिकल इयर बुक, क्रानिकल प्रकाशन, नई दिल्ली 2003, पृ.278

02ण्    साहू चन्द्रशेखर: अकाल मुक्त छत्तीसगढ़: यथार्थ एवं संभावनाएॅ, वैभव प्रकाशन, रायपुर 2001, पृ. 41-42      

 

 

Received on 12.06.2017       Modified on 19.07.2017

Accepted on 19.08.2017      © A&V Publication all right reserved

Int. J. Rev. and Res. Social Sci. 2017; 5(4):  187-192 .